साक्षात्कार के लिए हिंदी साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न श्रृंखला-1

 साक्षात्कार के लिए हिंदी साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न श्रृंखला-1


प्र॰   : आपने हिंदी क्यों ली ?  

उत्तर   : मैं एक हिंदी भाषी प्रदेश से आता हूँ हिंदी हमारी एवं शिक्षण की भाषा रही है ।

एक विषय के रूप में मैं हिंदी प्रथम कक्षा से स्नातक तक पढता रहा हूँ। लोक सेवा आयोग के पाठ्यक्रम में जिन रचना कारों को पढ़ना है उनकी कोइ न कोई रचना स्नातक तक किसी न किसी कक्षा में पढ़ा है और उनसे परिचित रहा हूँ इसलिए हिंदी का पाठ्यक्रम हमारे लिए पूर्व परिचित सा रहा है। शुरू से हिंदी साहित्य में मेरी रूचि भी रही है।

 


प्र॰: प्रशासन में हिंदी की क्या उपयोगिता ह?  

उत्तर: हिंदी व्यवहार में भले ही संघ की राजभाषा न हो लेकिन सिद्धांततः वह संघ की राजभाषा है। साथ ही हिंदी भाषी प्रदेशों की यह राजभाषा है। इसलिए भाषा के रूप में हिंदी न केवल प्रशासनिक कार्यो के निष्पादन में हमारी मददगार है बल्कि जनता से संवाद बनाने उनकी सम्स्याएँ जानने में भी यह मददगार है।

       दूसरे यह कि हिंदी भाषा का अपना एक साहित्य भी है वह साहित्य हमने पढ़ा है। साहित्य में हर रचनाकार मानवीय मूल्यों, मानवीय संवेदनाओं, नैतिकता, ईमानदारी आदि को ही प्रतिष्ठित करता है। आज जब प्रशासन से ये मूल्य धीरे-धीर गायब हो रहे है तब प्रशासन के शुष्क नियमों को अधिक मानवीय संदर्भ में रखकर देखने का नजरिया साहित्य ही दे सकता है।

 


प्र॰: हिन्दी क्या कोई विषय है?

उत्तर: दुनिया की सभी भाषाओं का अपना एक साहित्य है और वह साहित्य उस देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है जहाँ की वह भाषा है। यदि अंग्रेजी भाषा और साहित्य एक विषय हो सकता है तो हिंदी क्यों नहीं?

       जिस दूसरे विषयों का प्राध्यापन वस्तुनिष्ठ ढंग से किया जाता है उसी तरह से हिंदी भाषा और साहित्य का प्राध्यापन वस्तुनिष्ठ ढंग से किया गया है।

       किसी भी साहित्य में कपोल कल्पनाओं और दंत कथाओं से विधार्थियों को दिग्भ्रमित करने की कोई परियोजना या परिकल्पना नहीं चलती । साहित्य में यदि कल्पनाएँ हैं भी तो उसमें भी यथार्थ की सशक्त अभिव्यक्ति होती है।

       इसलिए यदि दूसरे विषयों के अध्ययन अध्यापन वैज्ञानिक ढंग से हो सकत हैं तो हिन्दी का भी हो सकता है।

       हिंदी भाषा के साहित्य के बारे में यदि गाँधी जी को कोई शक नहीं रहा, यदि गिर्यसन, विम्स, मैक्समूलर, को संदेह नहीं था तो किसी भारतवासी को इसमें संदेह नहीं होना चाहिए।

    

    

प्र॰   : हिन्दी में आप किस विधा को सबसे अधिक पसंद करते हैं?         और क्यों ?

उत्तर  : मै उपन्यास विधा को सर्वाधिक पसंद करता हूँ। मैं उपयास को इसलिए पसंद करत हूँ कि उपन्यास समसामयिक यर्थाथ को अभिव्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है। उपन्यास व्यक्ति और समाज के द्वन्द्वात्मक संबंधों की जितनी गहरी छानबीन कर सकता है, उतनी अन्य विधा नहीं। जार्ज लुकाच ने कहा है कि उपन्यास मनुष्य के बाहर भीतर की अराजकता को न केवल कलात्मक अभिव्यक्ति देता है बल्कि अराजकता में राजकता अव्यवस्था में व्यवस्था की भी तालाश करता है।



प्र॰   : आपके प्रिय रचनाकार कौन और क्यों हैं?

उ॰  : प्रेमचंद मेरे प्रिय कथाकार है। इसलिए कि प्रेमचंद हमारे आसपास के ही जीवन और समस्याओं का अपने उपन्यासों में इस तरह से प्रस्तुत करते हैं कि उनके द्वारा चित्रित जीवन अपना सा लगता हुआ भी कुछ विशिष्ट और प्रेरणादायी लगने लगता है तथा चित्रित समस्याएँ भी समाधान का संकेत देकर हमारी ऑखें खोल देती है। प्रेमचंद आम मानवीय जीवन की बुनियादी समस्याओं के चित्रकर्ता हैं। मुक्तिबाध ने उन्हें इसी कारण भारतीय आत्मा का शिल्पीं कहा है और उनके पात्रों को भारतीय विवेक चेतना का प्रतीक। प्रेमचंद हमें इसलिए भी पसंद है कि वे उपन्यास में गड़े मुर्दे नहीं उखारते, समसामयिक जीवन को ही चित्रित करते हैं उनके उपन्यास या उनकी कहानियाँ इतिहास और साहित्य का समन्वय है। प्रेमचंद इसलिए भी प्रिय हैं कि उन्होंने समाज के शोषित और पीड़ित वर्ग को सहानुभूति दी है। वे जीवन के दौड़ में पिछड़ गए लोगों को न केवल जीने का हौसला देते है बल्कि अपने हक और अधिकार के लिए लड़ना भी सिखाते है। प्रेमचंद की भाषा की सरलता भी हमें आकृष्ट करती है।

अज्ञेय  मेरे प्रिय कथाकार इसलिए है कि उन्होंने आधुनिक मानव को अपने उपन्यास का विषय बनाया। उनका यह आधुनिक मानव व्यक्तिवादी होकर भी अपने राष्ट्र और समाज से बेखबर नहीं है। उन्हें पसंद करने का दूसरा कारण है कि वे अपनी रचनाओं के जरिए पाठकों में बौद्धिक उत्तेजना पैदा करते है।

उनकी प्रौढ़ भाषा, उनके चरित्रों की दर्शनिक मुद्राएँ, उनकी सुरूचि आकर्षित करती है।


      

प्र॰   : आधुनिक/समकालीन कवियों में आप किसे पसंद करते हैं?

उ॰   : समकालीन कवियों में मेरे प्रिय कवि है, केदारनाथ सिंह मार्क्सवादी कवि हैं लकिन वे अपनी कविता में विचार जबरन थोपने की हड़बड़ी नहीं दिखाते। उनकी कविताएँ गाँव से लेकर शहर तक के जीवन की अनुभवों को समेटती है। वे इन्हीं अनुभवों क बीच विचारों को भी धीरे से रख देते हैं।

              मुझे लोगों का सड़क पार करना

              हमेशा अच्छा लगता है

              क्योंकि इसमें एक उम्मीद सी बनती है

              कि दुनिया जो इस तरफ है

              उससे कुछ बेहतर हो

              सड़क के उस तरफ

       इसमें कवि स्थिरता का विरोध करते हुए परिवर्तन में  अपनी आस्था ध्वनित करता है। केदारनाथ सिंह के काव्‍य संग्रह हैं –

            · भी बिल्कुल अभी (1960)

            · जमीन पक रही है(1980)

            · यहाँ से देखो (1983)

            ·  बाघ (1996),(पुस्तक के रूप में)

            ·  अकाल में सारस (1988)

            · उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ (1995)    

            ·तालस्ताय और साइकिल (2005)

            ·  सृष्टि पर पहरा (2014)

 

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