हिन्दी साहित्य में स्त्री - विमर्श


हिन्दी   साहित्य   में   स्त्री  -  विमर्श


 

स्त्री विमर्श उस साहित्यिक आंदोलन को कहा जाता है जिसमें स्त्री अस्मिता/ समस्या को केंद्र में रखकर संगठित रूप से  साहित्य की रचना की गई है। यह फेमिनिज्म का पर्याय मात्र है। यह स्त्रियों के सामाजिक, आर्थिक. राजनीतिक एवं सांस्कृतिक   विभेद के विरुद्ध समानता की चाह है।हिन्दी  साहित्य   में   स्त्री  -  विमर्श   की  शुरूआत  छायावाद  से   माना   जाता   है।   महादेवी   वर्मा  की   कविता   स्त्री   सशक्तिकरण   का   सुन्दर  उदाहरण   है।   जिसमें   नारी - जागरण   एवं  मुक्ति   का   सवाल   को   उठाया   गया   है।   

प्रेमचन्द   से   लेकर   राजेन्द्र   यादव   तक  अनेक   पुरूष   लेखकों   ने   नारी   समस्या   को  उकेरा   है।   लेकिन   महिला   लेखिकाओं   की  लेखनी  का धार बहुत अधिक तेज है। 60 के दशक में नारी - मुक्ति   को   लेकर   स्त्री  -  विमर्श   की  गूंज   में उषा   प्रियम्वदा ,  कृष्णा   सोबती ,  मन्नू  भण्डारी   एवं   शिवानी का नाम प्रमुख है।   इन्होंने नारी   मन   के   छिपे   शक्तियों   को   पहचाना  और   नारी  की दिशाहीनता ,  दुविधाग्रस्तता ,  कुण्ठा   आदि  का   विश्लेषण   किया। यही   लड़ाई   स्त्री  - विमर्श   या   नारी   सशक्तिकरण   के   रूप   में  परिलक्षित   होती   है।

अमृता   प्रीतम   के   रसीदी  टिकट ,  कृष्णा   सोबती -  मित्रों   मरजानी ,  मन्नू  भण्डारी - आपका   बंटी ,  चित्रा   मुद्गल  - आबां  एवं   एक   जमीन   अपनी ,  ममता   कालिया - बेघर ,  मृदुला   गर्ग  -  कठ   गुलाब ,  मैत्रेयी  पुष्पा  -  चाक   एवं   अल्मा   कबूतरी ,  प्रभा  खेतान   के   छिन्नमस्ता ,  पद्मा   सचदेव   के  अब     बनेगी   देहरी ,   राजीसेठ   का  तत्सम ,  मेहरून्निसा   परवेज   का   अकेला  पलाश ,  शशि   प्रभा   शास्त्री   की  सीढ़ियां ,  कुसुम   अंचल   के   अपनी - अपनी  यात्रा ,  शैलेश   मटियानी   की   बावन   नदियों  का   संगम ,  उषा   प्रियम्वदा   के   पचपन  खम्बे ,  लाल   दीवार ,  दीप्ति   खण्डेलवाल   के  प्रतिध्वनियाँ   आदि   में   नारी   संघर्ष   को   देखा  जा   सकता   है

भूमण्डलीकरण   ने   अपने   तमाम   अच्छाईयों   एवं   बुराईयों   के   साथ   सभी   वर्ग   के   शिक्षित   स्त्रियों   को   घर   से   बाहर   निकलने   का   अवसर   दिया।   परिणाम स्वरूप   स्त्रियों ने स्वाललम्बन   की   दिशा   में   तीव्र   प्रयास   किया एवं हर क्षेत्र में वे उभर कर सामने आई।

 

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